Tuesday 20 March 2012

poem

ख़ुद को तुम मेरी कायनात कहो
दिल को जो छूले ऐसी बात कहो

आज मौसम की पहली बारिश में
तन्हा कैसे कटेगी रात कहो 

पास बैठो कभी तो पल दो पल
कुछ हमारी कुछ अपनी बात कहो

आज वो बेनक़ाब निकले हैं
आज की रात चाँद रात कहो

हो गया होगा रो के दिल हल्का
ग़म से पाई नहीं निजात कहो

ज़िन्दगी को सुकून देती है
मौत को राहते-हयात कहो

ख़ाक जलकर हुआ है कौन ‘रक़ीब’
किसने खाई है किससे मात कहो
 

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